Friday, June 28, 2019

Movie

'' और '' जैसी फिल्मों में अपने बोल्ड अंदाज से दर्शकों का दिल जीतने वाली जल्द ही एक वेब सीरीज से अपना डिजिटल डेब्यू कर चुकी हैं। इस मुलाकात में वह हमसे फिल्मी करियर और इंडस्ट्री के बदलते ट्रेंड पर दिल खोलकर बातचीत करती हैं। इस वेब सीरीज से कैसे जुड़ना हुआ? मैं विदेश में थी और फरहाद समजी मेरे बहुत पुराने दोस्त हैं। उन्होंने मेरी कई फिल्मों के डायलॉग्स लिखे हैं। वहां उनका फोन आया था कि मल्लिका मेरे पास तुम्हारे लिए स्क्रिप्ट है, जो हॉरर कॉमिडी है। तुम्हें ऐसी भूतनी का किरदार निभाना है, जो उल्टे पैरों से चलती है। इस सीरीज में तुम्हारे ऑपोजिट संजय मिश्रा हैं। मैं संजय जी की बहुत बड़ी फैन हूं और उनके साथ काम करने की एक अरसे से ख्वाहिश थी। वहीं एकता के साथ भी काम करना था। वह मुझे प्रेरित करती हैं। ये सभी कारण थे, जिसके लिए मैंने हामी भरी। आपने जब करियर की शुरुआत की थी और आज जो बॉलिवुड है, क्या अंतर पाती हैं?हां, बहुत ज्यादा ही अंतर महसूस किया है। मैंने जब 'मर्डर' फिल्म की, तो लोगों ने बवाल खड़ा कर दिया था। कितनी-कितनी बातें मुझे सुनाई गई कि मल्लिक बदचलन है, कैरक्टरलेस है। अब देखो, अब तो सबकुछ कॉमन हो गया है। यहां तो फ्रंटल न्यूडिटी तक कॉमन हो गई है। कई ऐक्ट्रेसेज ऐसे सीन्स कर रही हैं। अब तो उन्हें कोई जज भी नहीं कर रहा है, क्योंकि वह स्क्रिप्ट की डिमांड है। लोगों के नजरिए में भी मैच्यॉरिटी आई है। आपने हाल ही में मीटू को लेकर एक बयान दिया था? मुझे कभी इससे गुजरना नहीं पड़ा था। हां, लेकिन मेरे हाथों से कई बार प्रॉजेक्ट्स निकल गए, क्योंकि सभी ऐक्टर्स को अपनी गर्लफ्रेंड को उन फिल्मों के लिए कास्ट करना होता था। ग्लोबल लेवल पर महिलाओं की जो दिक्कतें व स्थिति है, क्या वो एक-सी ही हैं?हां, सभी जगह महिलाओं की स्थिति एक-सी ही है। हर जगह की महिलाओं को लेकर लोग जजमेंटल होते हैं। महिलाओं की एज, लुक, वजन, रंग आदि सभी चीजों पर कॉमेंट किए जाते हैं। पूरा विश्व ही पितृसत्ता वाली सोच पर आधारित है। मुझे विदेश की एक बात बहुत अच्छी लगती है कि यहां महिलाएं दूसरी महिलाओं के लिए सपॉर्ट में आती हैं और उनका स्टैंड लेती हैं। हमारे देश में ऐसा नहीं है। महिलाएं एक-दूसरे की नीचा दिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ती है। मैं इसी सिस्टरहुड पर यकीन रखती हूं। देखिए मैं विद्या बालन की बहुत बड़ी फैन हूं। अगर मैं उनकी तारीफ कर दूं, तो इससे छोटी नहीं हो जाऊंगी। आपको इस बात का मलाल है कि वह दौर आपके लिए गलत था?नहीं-नहीं, मुझे कोई मलाल नहीं है, क्योंकि इन्हीं फिल्मों ने नाम और शौहरत दी है। मैं तो खुद को सौभाग्यशाली मानती हूं कि हरियाणा के एक छोटे कस्बे से होने के बावजूद मुझे अपनी जिंदगी अपनी शर्त से जीने का मौका मिला है, क्योंकि हमारे स्टेट में महिलाओं को ऐसा मौका नहीं मिलता है, यहां तो महिलाओं को गाय, भैंसों के बाद दर्जा दिया जाता है। मुझे पता है, इस स्टेटमेंट के बाद मैं मुश्किल में पड़ सकती हूं, लेकिन सच्चाई को नकारा नहीं जा सकता है। आज मैं अगर आत्मनिर्भर हूं, तो इसका क्रेडिट भी मेरी फिल्मों को ही जाता है। आप इस दौर के सिनेमा के बारे में क्या कहेंगी?यह दौर आर्टिस्ट्स के लिए काफी लिब्रेटिंग है। खासकर डिजिटल प्लैटफॉर्म की वजह से वे और ओपन हुए हैं। ट्रेडिशनल बॉलिवुड फिल्मों को देखें, तो महिलाओं को लेकर ही सारे नियम-कानून बनाए जाते थे। मतलब आप एक उम्र के बाद रोमांस नहीं कर सकतीं। आप ही देखें, राखी जी ने एक फिल्म में अमिताभ बच्चन की पत्नी का किरदार निभाया है, तो वहीं दूसरी फिल्म में वह मां बन गईं। यह मर्दों के साथ, तो कभी नहीं हुआ। सारा जजमेंट और रोक-टोक महिलाओं पर ही क्यों? वहीं आप आज डिजिटल प्लैटफॉर्म देखें, तो महिलाओं के लिए अब उम्र मायने नहीं रखते हैं। दिल्ली क्राइम में शेफाली छाया सीरीज की हीरो हैं। हालांकि बॉलिवुड में यह बदलाव आने में अभी भी समय लगेगा। आपने बॉलिवुड और विदेशी इंडस्ट्री में काम किया है। दोनों जगहों के वर्क कल्चर में क्या अंतर है? मुझे तो यहां काम करना पसंद है, क्योंकि यहां मेरे अपने लोग हैं। वहीं विदेश की बात करें, तो वहां राइटिंग की क्वॉलिटी उम्दा है। इंडिया में इसकी शुरुआत हो गई है, लेकिन थोड़ी स्लो है। खासकर महिलाओं को मद्देनजर रखकर कहानियां नहीं लिखी जा रही हैं। विदेशों में महिलों के लिए ऐसे रोल लिखे जाते हैं, जो आगे चलकर लोगों को प्रेरित करते हैं। बॉलिवुड में एक लंबा अरसा हो गया है। फिल्मों की चॉइसेस को लेकर अफसोस हुआ?फिल्मों की चॉइसेस को लेकर कोई अफसोस नहीं होता है। मैंने 'वेलकम', 'अग्ली पगली', 'हिस्स' जैसी चाइनीज फिल्में की हैं। मैं जहां भी हूं, खुश हूं। अपने आगामी प्रॉजेक्ट्स के बारे में बताएं? मैंने हाल ही में रजित कपूर के साथ एक फिल्म पूरी की है। इसमें मैं एक 1950 की ऐक्ट्रेस का किरदार निभा रही हूं। फिल्म की कहानी यही है कि शूटिंग सेट पर किस तरह कई बार चीजें कंट्रोल से बाहर चली जाती हैं। डायरेक्टर कैसे इन सब परेशानियों के बावजूद फिल्म पूरी कर लेता है।


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