Wednesday, January 29, 2020

Movie

लक्ष्मी शंकर मिश्र/लखनऊ कुणाल सिंह। भोजपुरी सिनेमा का इस समय का सबसे बड़ा नाम। इन्हें भोजपुरी सिनेमा का 'अमिताभ बच्चन' भी कहा जाता है। हालांकि एक ऐसा भी मौका आया जब भोजपुरी फिल्म 'गंगोत्री' में बॉलिवुड के शहंशाह और साथ में भी दिखे। कुणाल सिंह 4 दशक से भोजपुरी सिनेमा पर राज कर रहे हैं। 270 से अधिक फिल्में की हैं। 1983 में आई कुणाल सिंह की भोजपुरी फिल्म 'गंगा किनारे मोरा गांव' ने तो इतिहास ही रच दिया था। यह फिल्म वाराणसी के एक थिअटर में लगातार 1 साल 4 महीने तक चली थी। यह भोजपुरी सिनेमा के इतिहास में आज भी एक रेकॉर्ड है। फिलहाल कुणाल अब खुद निर्देशन में हाथ आजमाना चाहते हैं। वह एक सामाजिक फिल्म बनाने की तैयारी में हैं। 1977 में फिल्म में हीरो बनने के लिए कुणाल सिंह मुंबई पहुंचे थे। नवभारत टाइम्स ऑनलाइन से विशेष बातचीत में उन दिनों को याद करते हुए वह कहते हैं, 'वह जवानी के दिन थे। मैंने तय कर लिया था कि हीरो ही बनना है। मेरे पिताजी (बुद्धदेव सिंह) विधायक थे और बाद में काफी दिन तक मंत्री भी रहे। इसके बावजूद उन्होंने कुछ दिन बाद पैसा भेजना बंद कर दिया। उन्हें मेरे भविष्य की चिंता थी और मैं समझा कि मैं उन पर बोझ बन गया हूं। मैंने भी कह दिया कि अब मैं नौकरी कर रहा हूं और अपना खर्च खुद चला लूंगा।' 'मुंबई में रहने के लिए पिताजी से बोला था झूठ' कुणाल आगे याद करते हैं, 'पिताजी से तो झूठ बोल दिया लेकिन उसके बाद संघर्ष के दिन बहुत मुश्किल लग रहे थे। खैर, ईमानदारी से संघर्ष में जुटा रहा। फिर वह दिन भी आया जब मेरे हाथ एक फिल्म लगी 'कल हमारा है'। वैसे तो यह हिंदी फिल्म थी लेकिन इसकी कहानी बिहार के परिवेश पर थी और इसमें एक भोजपुरी बोलने वाला कलाकार चाहिए था। यह फिल्म पटना में करीब 37 हफ्ते तक चली और मैं हिंदी फिल्म से भोजपुरी का स्टार बन गया था।' 'फिल्म हिट हुई और फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा' सिंह बताते हैं, 'इसके बाद तो भोजपुरी निर्माताओं की लाइन लग गई। मेरे पास भी काम नहीं था। तो मैंने भी फिल्म साइन करनी शुरू कर दी। पर, यह ख्याल रखा कि कभी ऐसी फिल्म न करूं जिससे खुद की नजर में ही गिर जाऊं। आज 40 साल हो गए इंडस्ट्री में लेकिन कोई मुझ पर सवाल नहीं उठा सकता, इस बात का गर्व भी है। इस फिल्म के बाद कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।' 'भोजपुरी सिनेमा से अश्लीलता का दौर भी खत्म होगा' भोजपुरी में अश्लीलता के सवाल पर कुणाल कहते हैं, 'यह दौर भी जाएगा। कोई दौर स्थाई नहीं होता। हमने 270 से अधिक फिल्में कीं लेकिन पुरानी फिल्में उठाकर देखिए आपको बार-बार उसे देखने का मन होगा। वजह यह कि वह पूरे परिवार के साथ बैठकर देख सकते हैं। पर, आज की फिल्में या गाने हम सभी परिवार के साथ ना देख सकते हैं, ना सुन सकते हैं। पर, यह दौर भी जाएगा। पुराना सुनहरा दौर वापस आएगा। भोजपुरी सिनेमा के इतिहास में ही यह है।' अब एक हिंदी फिल्म कर रहा हूं 'विमोक्ष' काफी ऑफर रहे लेकिन मैंने कभी हिंदी को हां नहीं कहा। पर, अब मैं एक हिंदी फिल्म कर रहा हूं। इसका सब्जेक्ट पसंद आ गया है। लेखक-निर्देशक धीरज मिश्र की यह कहानी मुझे बेहद पसंद आई है। यह कहानी एक बाप-बेटे की है। बेटे की परवरिश में आज कल के माता-पिता कहां कमी कर जाते हैं। जीवन में शांति कितनी जरूरी है, इन सबकी तलाश है यह फिल्म। मेरा स्थान तो सिर्फ ले सकते हैं चार दशक से भोजपुरी सिनेमा पर राज कर रहे कुणाल सिंह का मानना है कि उनके बाद अगर कोई उनकी जगह ले सकता है तो वह रवि किशन हैं। कहते हैं, मुझे रवि किशन में वह सबकुछ दिखता है जो मेरी जगह ले सकते हैं। वह चरित्र अभिनेता के तौर पर भी लंबे समय तक भोजपुरी सिनेमा की सेवा कर सकते हैं। हर चरित्र निभा सकते हैं। वैसे तो कई ऐक्टर हैं, पर मैं खुद की जगह मेरी उम्र में रवि किशन को ही देखता हूं। राष्ट्रपति से सम्मान, शत्रुघ्न सिन्हा के खिलाफ चुनाव 2012 में भोजपुरी के प्रचार-प्रसार और फिल्मों में योगदान के लिए राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने कुणाल सिंह को राष्ट्र कवि दिनकर अवॉर्ड से सम्मानित किया था। वहीं, फिल्म के साथ-साथ कुणाल ने अपने पिता के नक्शेकदम पर चलते हुए राजनीति में भी कदम रखा। उन्होंने कांग्रेस से टिकट लेकर पटना साहिब से शत्रुघ्न सिन्हा के खिलाफ चुनाव लड़ा और दूसरे स्थान पर रहे। 2024 लोकसभा चुनाव में फिर चुनावी मैदान में उतरने की तैयारी है। 'साफ-सुथरी फिल्मे करें नए कलाकार' गायकों के अचानक भोजपुरी स्टार बनने के सवाल पर कुणाल सिंह कहते हैं, 'हर किसी को कुछ भी करने का हक है। हां, मैं बस इतना चाहता हूं कि अश्लीलता की जगह अगर कुछ अच्छा परोसा जाए तो इससे ना सिर्फ दर्शकों का फायदा होगा बल्कि कलाकारों का भी समाज में मान बढ़ता है। आप गंदी फिल्में करेंगे तो समाज में कोई क्यों इज्जत देगा। हां, आपको फ्री में देखने के लिए भीड़ जरूर जुट सकती है। पर, ऐसी भीड़ का क्या फायदा।' 'मैं विलेन भी बना, पर कभी रेप सीन नहीं किए' कुणाल सिंह अपने दौर को याद करते हुए कहते हैं, 'जब लगातार नायक का रोल करके परेशान हो गया तो मैंने फैसला किया कि कुछ फिल्मों में विलेन भी बनूं। मैं बना भी। दो-तीन ऐसी फिल्में हैं। पर, इस शर्त के साथ कि इस फिल्म में ना तो मैं किसी महिला के साथ रेप करूंगा, ना उसे टच करूंगा।' इन खास फिल्मों ने कुणाल को बनाया सुपरस्टार धरती मइया, हमार भौजी, चुटकी भर सिंदुर, गंगा किनारे मोरा गांव, दूल्हा गंगा पार के, दगाबाज बलमा, हमार बेटवा, राम जइसन भइया हमार, बैरी कंगना, छोटकी बहू, घर-अंगना, साथ हमार-तोहार।


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